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Monday, February 21, 2011

चले आओ किसी का डर नहीं है


चले आओ किसी का डर नहीं है|
ये मेरा है तुम्हारा घर नहीं है|1|

पहुँच ही जाएगी कानों में तेरे|
मेरी आवाज अब बे-पर नहीं है|2|

यहाँ सब काम लेते हैं नजर से |
किसी के हाथ में खंजर नहीं है|3|

हुए हैं रहनुमा राहों के पत्थर |
मुझे अब ठोकरों का डर नहीं है|4|

हैं चेहरे पर यहाँ चेहरे हजारों |
हया आँखों में रत्ती भर नहीं है |5|
:- सुनील टाँकSuniltaank8@gmail.com


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8 comments:

  1. सुनील जी की ग़ज़ल का हर एक शेर लाजवाब है. मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि किस शेर को सबसे अच्छा कहूँ. सुनील जी रूबरू होते तो सामने से उन्हें बधाई देता.ये इस ग़ज़ल का ही कमाल है कि मैं आपके ब्लॉग पर कमेन्ट देने से ख़ुद को रोक न पाया. काश ऐसी ही शिल्प और कथ्य के लिहाज से मजबूत रचनाएँ आपके ब्लॉग पर दिखतीं.

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  2. हुए हैं रहनुमा राहों के पत्थर |
    मुझे अब ठोकरों का डर नहीं है|4|

    बहुत खूब।
    जो राहों के पत्‍थरों से ही दोस्‍ती कर ले उसे पत्‍थरों का सख्‍त और नुकीलापन भी वरदान हो जाता है।

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  3. zabardast ! aisi ghazal jo comment karne par majboor kar deti hai. har sher damdar.

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  4. पहुँच ही जाएगी कानों में तेरे|
    मेरी आवाज अब बे-पर नहीं है|....

    बहुत उम्दा शेर...वैसे पूरी ग़ज़ल भी कम नहीं है...
    बधाई।

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  5. हुए हैं रहनुमा राहों के पत्थर |
    मुझे अब ठोकरों का डर नहीं है|4|

    बहुत ख़ूब !

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  6. बेहद प्रभावी ग़ज़ल , हौसला दिलाने वाली | बधाई !! क्या शेर कहा -

    यहाँ सब काम लेते हैं नजर से |
    किसी के हाथ में खंजर नहीं है|3|

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  7. बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है, हर एक शे’र शानदार, सुनील जी को बहुत बहुत बधाई

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  8. SUNIL SAHIB.....aksar kisi bhi ghazal men ek ya do sher hi haasile-ghazal hote hain..lekin aapki ghazalen iska apwaad hain..sher sher behad qeemati aur umdah ! - Manoj Azhar.

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