हम बदल कर जैसे हो संदल गए
प्यास ऐसी दी समंदर ने हमें
लब हमारे खुश्क होकर जल गए
चाँद निकला रात में नंगे बदन
देवता सब छोड़ कर पीपल गए
इश्क नेमत है, क़ज़ा है या भरम
फैसले कितने इसी पर टल गए
आज रोया हूँ बहुत मैं रात भर
बन के आँसू सारे अरमां गल गए
रौनकें चेहरों कि उडती देख ली
जब जुबां से सच के गोले चल गए
बेअसर होती गयी हर बद्दुआ
हम दुआ देने कि बाज़ी चल गए
हो गए बर्बाद कोई गम नहीं
शेष के भाई भतीजे पल गए
ठाले-बैठे ब्लॉग पर वापस
प्यास ऐसी दी समंदर ने हमें
लब हमारे खुश्क होकर जल गए
चाँद निकला रात में नंगे बदन
देवता सब छोड़ कर पीपल गए
इश्क नेमत है, क़ज़ा है या भरम
फैसले कितने इसी पर टल गए
आज रोया हूँ बहुत मैं रात भर
बन के आँसू सारे अरमां गल गए
रौनकें चेहरों कि उडती देख ली
जब जुबां से सच के गोले चल गए
बेअसर होती गयी हर बद्दुआ
हम दुआ देने कि बाज़ी चल गए
हो गए बर्बाद कोई गम नहीं
शेष के भाई भतीजे पल गए
ठाले-बैठे ब्लॉग पर वापस
हो गए बर्बाद कोई गम नहीं
ReplyDeleteशेष के भाई भतीजे पल गए
वाह क्या बात है खूब सूरत अशार हैं बधाई।
धन्यवाद निर्मला जी.
ReplyDeleteवाह वाह तिवारी जी, हर शे’र शानदार है। बहुत सुंदर ग़ज़ल। बहुत बहुत बधाई।
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