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Monday, February 14, 2011

शेष के भाई भतीजे पल गए

सांप इतने आस्तीं में पल गए
हम बदल कर जैसे हो संदल गए

प्यास ऐसी दी समंदर ने हमें
लब हमारे खुश्क होकर जल गए

चाँद निकला रात में नंगे बदन
देवता सब छोड़ कर पीपल गए

इश्क नेमत है, क़ज़ा है या भरम
फैसले कितने इसी पर टल गए

आज रोया हूँ बहुत मैं रात भर
बन के आँसू सारे अरमां गल गए

रौनकें चेहरों कि उडती देख ली
जब जुबां से सच के गोले चल गए

बेअसर होती गयी हर बद्दुआ
हम दुआ देने कि बाज़ी चल गए

हो गए बर्बाद कोई गम नहीं
शेष के भाई भतीजे पल गए


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3 comments:

  1. हो गए बर्बाद कोई गम नहीं
    शेष के भाई भतीजे पल गए
    वाह क्या बात है खूब सूरत अशार हैं बधाई।

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  2. धन्यवाद निर्मला जी.

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  3. वाह वाह तिवारी जी, हर शे’र शानदार है। बहुत सुंदर ग़ज़ल। बहुत बहुत बधाई।

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