सभी साहित्य रसिकों का सादर अभिवादन
पिछले दिनों वातायान के इस अंक के लिए हिन्दी साहित्य जगत के पितामह श्री भारतेन्दु हरीशचंद्र जी के होली पर कुछ छन्द ढूँढ रहा था और मिल गयी यह ग़ज़ल| इसे मैने बीबीसी की वेबसाइट से लिया है| पढ़ते वक्त लगा कहीं कहीं कुछ टाइपिंग मिस्टेक्स हैं, इसलिए फिर से सर्च मारा| सभी जगह यह ग़ज़ल इसी रूप में मिली| मैने अपनी तरफ से कुछ शब्द इस में कोष्टक में रखते हुए जोड़े हैं ताकि पूरी ग़ज़ल को पढ़ने का आनंद आ सके| पता नहीं कि परम श्रद्धेय स्व. भारतेन्दु जी ने मूल रूप से इन्हीं शब्दों को लिया था या किन्हीं और शब्दों को| यदि इस में कोई भूल हो तो उस के लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ|
गले मुझको लगा लो ए [मेरे] दिलदार होली में|
बुझे दिल की लगी भी तो ए [मेरे] यार होली में.|१|
नहीं यह है गुलाले सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे|
ये आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में.|२|
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो|
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्यौहार होली में|३|
है रंगत जाफ़रानी रुख़ अबीरी [कुमकुमें] कुछ हैं|
बने हो ख़ुद ही होली [तुम] तो ए दिलदार होली में|४|
रसा गर जामे-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझको भी|
नशीली आँख दिखला कर करो सरशार होली में|५|
:- भारतेन्दु हरिशचंद्र
जब मैं कुछ और छन्द ढूँढ रहा था तो अलंकरणों से युक्त बड़े ही नायाब छन्द मिले भाई गजेंद्र सोलंकी जी के| दिल्ली निवासी गजेंद्र भाई स्थापित कवि और एक सफल मंच संचालक हैं| आइए पढ़ते हैं उन के घनाक्षरी कवित्तों को|
सुनो मेरे मीत, राष्ट्र- भावना के गीत और,
प्रीति की प्रतीति लेके आया तव धाम जी|
आपके अतीत के ही सन्सकार वाली रीत,
पावन सी प्रीत लेके आया तव धाम जी|
गई अब बीत ठिठुरन ॠतु शीत की रे,
टेसू रंग पीत लेके आया तव धाम जी|
हो रहा प्रतीत, होगी प्रेम की ही जीत भैया,
होली के ये गीत लेके आया तव धाम जी||
यौवन पे है उमंग औ’ वसंत की तरंग,
मद भरे रंग ले निराली होली आई रे|
दिलदार संग-संग झूमते हैं पी के भंग,
भीगे अंग-अंग मतवाली होली आई रे|
उठती उचंग तन हो रहा मलंग आज,
देख सभी हुए दंग आली होली आई रे|
मचा हुड़दंग पिचकारियों की छिड़ी जंग,
प्रेम के प्रसंग रसवाली होली आई रे||
देवरों ने रंग डाले भाभियों के प्रिय अंग,
देवरानियों की ससुराली होली आयी रे|
जीजाओं के हाथों में गुलाल, सालियों के किये-
गाल लाल-लाल, जो रँगीली होली आई रे|
युवा बने ग्वाल बाल, बालाएं ग्वालिन बनीं,
लगे मानो बरसाने वाली होली आयी रे|
साठ साल वालों के भी दिल हैं जवान आज,
सब के गालों पे छायी लाली होली आई रे||
:- गजेंद्र सोलंकी
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bahut khoob...
ReplyDeleteholi ki ye rachnaen padhkar maza aa gaya..
भारतेंदु जी की इस रचना को प्रस्तुत कर आपने होली की उमंग अभी से जगा दी।
ReplyDeleteआभार आपका।
गजेन्द्र जी को कवि सम्मेलनों के मंचों से पहले भी सुना है। उनकी भी अच्छी रचना।
एक बार फिर आभार।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteभारतेंदु जी की पूरी गज़ल ही होली के रंगों जैसी खूबसूरत है। खास कर ये शेर--
ReplyDeleteगुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो|
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्यौहार होली में|३|
,और गजेन्द्र जी की कविता मे होली का हर भाव सुन्दर है--\यौवन पे है उमंग औ’ वसंत की तरंग,
मद भरे रंग ले निराली होली आई रे|
दिलदार संग-संग झूमते हैं पी के भंग,
असली होली का रंग तो यही है। ये सुन्दर रचनायें पढवाने के लिये आभार।
बढ़िया प्रस्तुति !
ReplyDeleteशुभकामनायें !!
फागुनी रंग में रंगी सुंदर रचना ...... बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteनहीं यह है गुलाले सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे,
ReplyDeleteये आशिक ही है उमड़ी आहें आतिशबार होली में।
भारतेंदु जी की इस सुंदर ग़ज़ल को पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए शुक्रिया, नवीन जी।
गजेन्द्र जी की धनाक्षरी का भी कोई जवाब नहीं।
बहुत ही प्रभावशाली और मनमोहक रचना है।
भारतेंदु जी के होली के गीत पढ़वाने के लिए धन्यवाद !
ReplyDeleteगजेन्द्र जी की घनाक्षरी अच्छी लगी !
आभार !
bahut khoob...
ReplyDeletebahut achchi lagi.....
ReplyDeleteभाई नवीन जी सुंदर पोस्ट के लिए बधाई |सपरिवार होली की रंगभरी शुभकामनाएं |
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