This Blog is MERGED with
THALE BAITHE
Please click here to be there







Followers

Tuesday, June 14, 2011

तुफ़ैल चतुर्वेदी जी की गज़लें



[ख्याति प्राप्त अन्तर्राष्ट्रीय शायर श्री तुफ़ैल चतुर्वेदी जी]

हुआ जिसका भरोसा भी नहीं था|
कि वो उभरा – जो तैरा भी नहीं था|१|

महब्बत इम्तेहा लेती है ऐसे|
वो ही चुप था – जो गूँगा भी नहीं था|२|

शहंशाहों से यारी थी हमारी|
भले ही पास ढेला भी नहीं था|३|

बुराई जिस तरह मेरी हुई है|
मियाँ, मैं ऐसा अच्छा भी नहीं था|४|

ज़रूरत पेश आती दुश्मनी की|
तअल्लुक़ इतना गहरा भी नहीं था|५|

मैं सदियाँ छीन लाया वक़्त तुझसे|
मेरे कब्ज़े में लमहा भी नहीं था|६|

तेरी हालत बदल पाती तो कैसे|
कि जब आँखों में सपना भी नहीं था|७|





धीरे धीरे अश्क़ तो कम हो जाएंगे|
लेकिन दिल पर ज़ख्म रक़म हो जाएंगे|१|

दीवाने की पलकें खुलने मत देना|
सहरा तेरे बंजर नम हो जाएंगे|२|

मेरे पैरों में चुभ जाएंगे लेकिन|
इस रस्ते से काँटे कम हो जाएंगे|३|

उसकी याद का झोंका आने वाला है|
ये जलते लम्हे शबनम हो जाएंगे|४|

हम थक कर बैठेंगे उस की चौखट पर|
सारे राही तेज़ क़दम हो जाएंगे|५|

सूखती जाती है तेरी यादों की झील|
पंछी ग़ज़ल के आने कम हो जाएंगे|६|

दुनियादारी ताक़ पे रखने का जी है|
घर में रह कर हम गौतम हो जाएंगे|७|






दिलों के ज़हर को शाइस्तगी ने काट दिया|
अँधेरा था तो घना – चाँदनी ने काट दिया|१|

बड़ा तवील सफ़र था हयात का लेकिन|
ये रास्ता मेरी आवारगी ने काट दिया|२|

हमें हमारे उसूलों से चोट पहुँची है|
हमारा हाथ हमारी छुरी ने काट दिया|३|

तुम अगले जन्म में मिलने की बात करते हो|
ये रास्ता जो मेरी ख़ुदकुशी ने काट दिया|४|

खमोशियों से तअल्लुक़ की डोर टूट गयी|
पुराना रिश्ता तेरी बेरुख़ी ने काट दिया|५|

ज़िगर के टुकड़े मेरे आँसुओं में आने लगे|
बहाव तेज़ था, पुश्ता नदी ने काट दिया|६|
====






जिस जगह पत्थर लगे थे, रंग नीला कर दिया|
अब के रुत ने मेरा बासी ज़िस्म ताज़ा कर दिया|१|

आईने में अपनी सूरत भी न पहिचानी गई|
आँसुओ ने आँख का हर अक़्स धुंधला कर दिया|२|

उस की ख़्वाहिश में तुम्हारा सिर है, तुम को इल्म था|
अपनी मंज़ूरी भी दे दी, तुमने ये क्या कर दिया|३|

उस के वादे के इवज़ दे डाली अपनी ज़िंदगी|
एक सस्ती शय का ऊंचे भाव सौदा कर दिया|४|

कल वो हँसता था मेरी हालत पे, अब हँसता हूँ मैं|
वक़्त ने उस शख़्स का चेहरा भी सेहरा कर दिया|५|

था तो नामुमकिन तेरे बिन मेरी साँसों का सफ़र|
फिर भी मैं ज़िंदा हूँ, मैंने तेरा कहना कर दिया|६|

हम तो समझे थे कि अब अश्क़ों की किश्तें चुक गईं|
रात इक तस्वीर ने फिर से तक़ाज़ा कर दिया|७|
====








आहट हमारी सुन के वो खिड़की में आ गये|
अब तो ग़ज़ल के शेर असीरी में आ गये|१|

साहिल पे दुश्मनों ने लगाई थी ऐसी आग|
हम बदहवास डूबती कश्ती में आ गये|२|

अच्छा दहेज दे न सका मैं, बस इसलिए|
दुनिया में जितने ऐब थे, बेटी में आ गये|३|

हम तो समझ रहे थे ज़माने को क्या ख़बर|
किरदार अपने, देख – कहानी में आ गये|४|

तुमने कहा था आओगे – जब आयेगी बहार|
देखो तो कितने फूल चमेली में आ गये|५|

उस की गली को छोड़ के ये फ़ायदा हुआ|
ग़ालिब, फ़िराक़, जोश की बस्ती में आ गये|६|

हम राख़ हो चुके हैं, तुझे भी जता तो दें|
बस इस ख़याल से तेरी शादी में आ गये|६|

हाँ इस ग़ज़ल में उन के ख़यालात नज़्म हैं|
इस बार बादशाह – ग़ुलामी में आ गये|७|
=====






वरक़-वरक़ पे उजाला उतार आया हूँ|
ग़ज़ल में मीर का लहज़ा उतार आया हूँ|१|

बरहना हाथ से तलवार रोक दी मैंने|
मैं शाहज़ादे का नश्शा उतार आया हूँ|२|

समझ रहे थे सभी, मौत से डरूँगा मैं|
मैं सारे शहर का चेहरा उतार आया हूँ|३|

मुक़ाबिले में वो ही शख़्स सामने है मेरे|
मैं जिस की ज़ान का सौदा उतार आया हूँ|४|

उतारती थी मुझे तू निगाह से दुनिया|
तुझे निगाह से दुनिया उतार आया हूँ|५|

ग़ज़ल में नज़्म किया आंसुओं को चुन-चुन कर|
चढ़ा हुआ था, वो दरिया उतार आया हूँ|६|

तेरे बगैर कहाँ तक ये वज़्न उठ पाता|
मैं अपने चेहरे से हँसना उतार आया हूँ|७|
====






अदालतें हैं मुक़ाबिल - तो फिर गवाही क्या|
सज़ा मिलेगी मुझे – मेरी बेगुनाही क्या|१|

मेरे मिज़ाज़ में शक़ बस गया मेरे दुश्मन|
अब इस के बाद मेरे घर की है तबाही क्या|२|

हर एक बौना मेरे क़द को नापता है यहाँ|
मैं सारे शहर से उलझूँ मेरे इलाही क्या|३|

समय के एक तमाचे की देर है प्यारे|
मेरी फ़क़ीरी भी क्या – तेरी बादशाही क्या|४|

तमाम शहर के ख़्वाबों में क्यों अँधेरा है|
बरस रही है – घटाओ! कहीं – सियाही क्या|५|

मेरे खिलाफ़ मेरे सारे काम जाते हैं|
तू मेरे साथ नहीं है, मेरे इलाही क्या|६|

बस अपने ज़ख्म से खिलवाड़ थे हमारे शेर|
हमारे जैसे क़लमकार ने लिखा ही क्या|७|
=====






पल पल सफ़र की बात करें आज ही तमाम|
मंज़िल क़रीब आई, हुई ज़िंदगी तमाम|१|

पौ क्या फटी, कि शब के मुसाफिर हुए विदा|
पीपल की छाँव तुझसे हुई दोस्ती तमाम|२|

पिछली सफ़ों के लोग जलाएं लहू से दीप|
मैं चुक गया हूँ, मेरी हुई रोशनी तमाम|३|

बस उस गली में जा के सिसकना रहा है याद|
उसकी तलब में छूट गयी सरकशी तमाम|४|

कुछ था कि जिस से ज़ख्म हमेशा हरा रहा|
बेचैनियों के साथ कटी ज़िंदगी तमाम|५|

ये और बात – प्यास से दीवाना मर गया|
लेकिन किसी तरह तो हुई तश्नगी तमाम|६|
=====






धूप होते हुए बादल नहीं मांगा करते|
हम से पागल, तेरा आँचल, नहीं माँगा करते|१|

हम फ़कीरों को ये गठरी, ये चटाई है बहुत|
हम कभी शाहों से मखमल नहीं माँगा करते|२|

छीन लो, वरना न कुछ होगा निदामत के सिवा|
प्यास के राज में, छागल नहीं माँगा करते|३|

हम बुजुर्गों की रिवायत से जुड़े हैं भाई|
नेकियाँ कर के कभी फल नहीं माँगा करते|४|

देना चाहे तू अगर, दे हमें दीदार की भीख|
और कुछ भी – तेरे पागल नहीं माँगा करते|५|

आज के दौर से उम्मीदेवफ़ा! होश में हो?
यार, अंधों से तो काजल नहीं माँगा करते|६|
====






गुबार दिल से पुराना नहीं निकलता है|
कोई भी सुलह का रस्ता नहीं निकलता है|१|

उठाए फिरते हैं सर पर सियासी लोगों को|
अगरचे, काम किसी का नहीं निकलता है|२|

लड़ाई कीजिये, लेकिन, जरा सलीक़े से|
शरीफ़ लोगों में जूता नहीं निकलता है|३|

तेरे ही वास्ते आँसू बहाये हैं हमने|
सभी का हम पे ये क़र्ज़ा नहीं निकलता है|४|

जो चटनी रोटी पे जी पाओ, तब तो आओ तुम|
कि मेरे खेत से सोना नहीं निकलता है|५|

ये सुन रहा हूँ कि तूने भुला दिया मुझको|
वफ़ा का रंग तो कच्चा नहीं निकलता है|६|
====






अश्क़ों से आँखों का पर्दा टूट गया|
इश्क़ का आखिर कच्चा धागा टूट गया|१|

बेटे की अर्थी चुपचाप उठा तो ली|
अंदर अंदर लेकिन बूढ़ा टूट गया|२|

सोचा था सच की ख़ातिर जाँ दे दूँगा|
मेरा मुझसे आज भरोसा टूट गया|३|

पर्वत की बाँहों में जोश अलग ही था|
मैदानों में आ कर दरिया टूट गया|४|

नई बहू से इतनी तबदीली आई|
भाई का भाई से रिश्ता टूट गया|५|
=====






प्यार किया है तो मर जाना थोड़ी है|
दीवाना – इतना दीवाना थोड़ी है|१|

आँखों से धोका मत खा जाना, इन में|
तू भी है – खाली वीराना थोड़ी है|२|

तनहा दिल आखिर दुनिया से हार गया|
लेकिन वो दुनिया की माना थोड़ी है|३|

टूटे रिश्ते पर रोना-धोना कर बंद|
उस को अब की बार मनाना थोड़ी है|४|

शुहरत की ऊँचाई पर इतराता है|
पर्वत से वादी में आना थोड़ी है|५|

हम तुम कागज़ पर सदियों साँसें लेंगे|
लफ़्ज़ों का जादू मर जाना थोड़ी है|६|
====








हवा को रुख बदलना चाहिए था|
दिया मेरा भी जलना चाहिए था|१|

डुबोया आँसुओं में सारा जीवन|
समंदर से निकलना चाहिए था|२|

पड़े हो रास्ते पर खाक ओढ़े|
हवा के साथ चलना चाहिए था|३|

पिघल उठ्ठी थी तारीकी फ़जा की|
हमें कुछ और जलना चाहिए था|४|

जरूरी था सभी के साथ रहते|
जरा सा बच के चलना चाहिए था|५|

अँधेरा आदतन करता है साज़िश|
मगर सूरज निकलना चाहिए था|६|

तुम्हारी बात बिलकुल ठीक थी बस|
तुम्हें लहज़ा बदलना चाहिए था|७|
====








नहीं झोंका कोई भी ताज़गी का|
तो फिर क्या फायदा इस शायरी का|१|

बहुत दिन तक नहीं बहते हैं आँसू|
वो दरिया हो गया सहरा कभी का|२|

किसी ने ज़िंदगी बरबाद कर दी|
मगर अब नाम क्या लीजै किसी का|३|

महब्बत में ये किसने ज़हर घोला|
बहुत मीठा था पानी इस नदी का|४|

तेरी तस्वीर पर आँसू नहीं हैं|
मगर धब्बा नहीं जता नमी का|५|

वही जो मुस्कुराता फिर रहा है|
उदासी ढूँढती है घर उसी का|६|

वो रिश्ता तोड़ने के मूड में है|
मियाँ पत्ता चलो अब ख़ुदकुशी का|७|

सिमट आए फिर इक दिन ज़ात में हम|
बहुत दिन दुख सहा ज़िंदादिली का|८|

किसी दिन हाथ धो बैठोगे हमसे|
तुम्हें चस्का बहुत है बेरुख़ी का|९|
====





[ये १५ गज़लें उपलब्ध कराने के लिए, भाई विकास शर्मा 'राज़' जी का बहुत बहुत आभार]

तुफ़ैल जी का ई मेल पता:- tufailchaturvedi@yahoo.com
मोबाइल नंबर :- +91 9810387857

29 comments:

  1. एक से बढ़ कर एक शे'अर.. किस-किस को अच्छा कहें.. एकदम से मजा आ गया. तुफैल जी से रू-ब-रू कराने के लिए हार्दिक आभार.

    ReplyDelete
  2. यह अंदाज़ पसंद आया

    प्यार किया है तो मर जाना थोड़ी है
    दीवाना – इतना दीवाना थोड़ी है

    तुफ़ैल जी की सभी ग़ज़लें बहुत पसंद आईं. आभार.

    ReplyDelete
  3. वातायन क्या खोला हमने एक के बाद एक गज़ल का झोंका आया ,मधु रस लाया ,दिल हर्षाया ,भावों ने कितना तरसाया .एक से बढ़ कर एक -
    उठाए फिरतें हैं सर पर सियासी लोगों को ,
    अगरचे काम किसी का नहीं निकलता ।
    महब्बत में ये किसने ज़हर घोला ,
    बहुत मीठा था पानी इस नदी का .शुक्रिया भाई साहब आपका इस दावत के लिए .बहुत बढिया सामान परोसा .

    ReplyDelete
  4. प्रिय नवीन जी,

    आपसे तअल्लुक ई-कविता और थोडा गुरूजी श्री पंकज सुबीर साहब के ब्लॉग से है।

    वातायन पर श्री तुफैल चतुर्वेदी जी की गज़लें पढ़ी औअर बस पढ़ता ही रहा। पहली गज़ल के इस शे’र पर तो क्या कहूँ :-

    जरूरत पेश आती दुश्मनी की
    तअल्लुक इतना गहरा भी नही था

    और इस शे’र ने तो जैसे पूरी महफिल ही लूट ली हो :-

    हम तो समझे थे कि अब अश्क़ों की किश्तें चुक गईं|
    रात इक तस्वीर ने फिर से तक़ाज़ा कर दिया

    बहुत अच्छी प्रस्तुति के लिये श्री नवीन जी का आभार....

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    नोट : एक मश्विरा है शायद आप अन्यथा नही लेंगे कि इतनी उम्दा गजलों को एक साथ १५ नही ५-५ की किश्तों में की जायें तो किसी भी सुधि पाठक को वक्त मिलता है कि रचनाकार के मन में झाँकने का....

    ReplyDelete
  5. भाई नवीन जी तुफैल जी की गज़लें पढ़वाने के लिये आभार

    ReplyDelete
  6. बार बार पढ़ने को मन करता है.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    ReplyDelete
  7. नवीन जी तुफैल जी की गजले पढवाने और सुन्दर संकलन के लिए धन्यवाद और आभार
    महब्बत में ये किसने ज़हर घोला|
    बहुत मीठा था पानी इस नदी का|४|

    ReplyDelete
  8. मैं सदियाँ छीन लाया वक़्त तुझसे|
    मेरे कब्ज़े में लमहा भी नहीं था|
    behtreen najm se parichay karane ke liye bahut bahut shukriya......

    ReplyDelete
  9. क्या बात , सभी एक से बढकर एक

    ReplyDelete
  10. आद. नवीन जी,
    तुफैल जी की बेहतरीन ग़ज़लें पढ़वाने के लिए शुक्रिया !
    आभार !

    ReplyDelete
  11. अरे वाह, मजा आ गया। शुक्रिया।

    ------
    TOP HINDI BLOGS !

    ReplyDelete
  12. इतनी सुन्दर और प्यारी गजलें पढ़वाने के लिए आभार

    ReplyDelete
  13. एक से बढ़ कर एक
    great collection

    ReplyDelete
  14. बेहतरीन गज़लियात , एक से एक बढकर।

    ReplyDelete
  15. बहुत बहुत शुक्रिया नवीन भाई, आपने न पढ़वाया होता तो पता नहीं कब पढ़ते हम तुफैल जी को। बहुत ही शानदार ग़ज़लें लिखते हैं। मेरी शुभकामनाएँ उन तक पहुँचा दीजिएगा।

    ReplyDelete
  16. भावपूर्ण अभिव्यक्ति और सुन्दर प्रस्तुति........ बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  17. आपने पढ़वाया...बहुत बहुत शुक्रिया..शानदार ग़ज़लें

    ReplyDelete
  18. khoobsoorat prastuti , aabhaar
    राजनेताओं की मक्कारी और अनवरत भ्रष्टाचार के बावजूद
    भारतीय स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएं .

    ReplyDelete
  19. तुफैल साहब की रचनाओं को सब तक पहुँचाने का आपको और विकाश जी दोनों को दिल से आभार....!!! पचास साल पूरे करने पर तुफैल साहब को विनम्र बधाई !

    ReplyDelete
  20. बहुत शानदार

    ReplyDelete
  21. शानदार ग़ज़लें|
    विजयादशमी पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  22. वाह...वाह...वाह
    तुफ़ैल साहब की शायरी सीधे दिल में उतर गई.

    ReplyDelete
  23. वाह ...बहुत बढि़या प्रस्‍तुति ..सभी गजलें एक से बढ़कर एक हैं आभार ।

    ReplyDelete
  24. सुंदर रचनाएं .. एक से बढकर एक !!

    ReplyDelete
  25. आईने में अपनी सूरत भी न पहिचानी गई|
    आँसुओ ने आँख का हर अक़्स धुंधला कर दिया|बहुत शानदार.

    ReplyDelete
  26. आदरणीय महोदया
    अमृता जी का हौज खास वाला घर बिक गया है। कोई भी जरूरत सांस्कृतिक विरासत से बडी नहीं हो सकती। इसलिये अमृताजी के नाम पर चलने वाली अनेक संस्थाओं तथा इनसे जुडे तथाकथित साहित्यिक लोगों से उम्मीद करूँगा कि वे आगे आकर हौज खास की उस जगह पर बनने वाली बहु मंजिली इमारत का एक तल अमृताजी को समर्पित करते हुये उनकी सांस्कृतिक विरासत को बचाये रखने के लिये कोई अभियान अवश्य चलायें। पहली पहल करते हुये भारत के राष्ट्रपति को प्रेषित अपने पत्र की प्रति आपको भेज रहा हूँ । उचित होगा कि आप एवं अन्य साहित्यप्रेमी भी इसी प्रकार के मेल भेजे । अवश्य कुछ न कुछ अवश्य होगा इसी शुभकामना के साथ महामहिम का लिंक है
    भवदीय
    (अशोक कुमार शुक्ला)

    महामहिम राष्ट्रपति जी का लिंक यहां है । कृपया एक पहल आप भी अवश्य करें!!!!

    ReplyDelete
  27. इन्हें लफ़्ज़ में पढ़ा था। आज यहां पढ़ा। हमेशा अच्छी लगी।

    ReplyDelete