मैं कोई हरिश्चंद्र तो नहीं हूँ, पर सच बोलने को प्राथमिकता अवश्य देता हूँ| और सच ये है कि चंद हफ़्ते पहले तक मैं नहीं जानता था आदरणीय तुफ़ैल चतुर्वेदी जी को| कुछ मित्रों से सुना उन के बारे में| सुना तो बात करने का दिल हुआ| बात हुई तो मिलने का दिल हुआ| और मिलने के बाद आप सभी से मिलाने का दिल हुआ| हालाँकि मैं जानता हूँ कि आप में से कई सारे उन्हें पहले से भी जानते हैं| फिर भी, जो नहीं जानते उन के लिए और अंतर्जाल के भावी संदर्भों के लिए मुझे ऐसा करना श्रेयस्कर लगा|
पर क्या बताऊँ उन के बारे में, जब कि मैं खुद भी कुछ ज्यादा जानकारी नहीं रखता| तो आइये सबसे पहले पढ़ते हैं उन के प्रिय शिष्य, भाई विकास शर्मा ‘राज़’ के हवाले से प्राप्त उन के कुछ चुनिन्दा शेर:-
उस की गली को छोड़ के ये फ़ायदा हुआ|
ग़ालिब, फ़िराक़, जोश की बस्ती में आ गये||
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मैं सदियाँ छीन लाया वक़्त तुझसे|
मेरे कब्ज़े में लमहा भी नहीं था||
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मेरे पैरों में चुभ जाएंगे लेकिन|
इस रस्ते से काँटे कम हो जाएंगे||
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हम तो समझे थे कि अब अश्क़ों की किश्तें चुक गईं|
रात इक तस्वीर ने फिर से तक़ाज़ा कर दिया||
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अच्छा दहेज दे न सका मैं, बस इसलिए|
दुनिया में जितने ऐब थे, बेटी में आ गये||
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तुमने कहा था आओगे – जब आयेगी बहार|
देखो तो कितने फूल चमेली में आ गये||
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हर एक बौना मेरे क़द को नापता है यहाँ|
मैं सारे शहर से उलझूँ मेरे इलाही क्या||
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बस अपने ज़ख्म से खिलवाड़ थे हमारे शेर|
हमारे जैसे क़लमकार ने लिखा ही क्या||
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हम फ़कीरों को ये गठरी, ये चटाई है बहुत|
हम कभी शाहों से मखमल नहीं माँगा करते||
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लड़ाई कीजिये, लेकिन, जरा सलीक़े से|
शरीफ़ लोगों में जूता नहीं निकलता है||
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बेटे की अर्थी चुपचाप उठा तो ली|
अंदर अंदर लेकिन बूढ़ा टूट गया||
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नई बहू से इतनी तबदीली आई|
भाई का भाई से रिश्ता टूट गया||
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तुम्हारी बात बिलकुल ठीक थी बस|
तुम्हें लहज़ा बदलना चाहिए था||
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नहीं झोंका कोई भी ताज़गी का|
तो फिर क्या फायदा इस शायरी का||
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किसी दिन हाथ धो बैठोगे हमसे|
तुम्हें चस्का बहुत है बेरुख़ी का||
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तो ये हैं तुफ़ैल चतुर्वेदी जी - हिंदुस्तान-पाकिस्तान दोनों मुल्कों के शायरों के अज़ीज़| नोयडा [दिल्ली] में रहते हैं| पेंटिंग्स, रत्न, रेकी और न जाने क्या क्या इन के तज़रूबे में शामिल हैं – ग़ज़ल के सिवाय| उस्ताद शायर के रुतबे को शोभायमान करते तुफ़ैल जी की बातों को अदब के हलक़ों में ख़ासा सम्मान हासिल है|
आप की गज़लों में सादगी के साथ साथ चुटीले कथ्यों की भरमार देखने को मिलती है| उरूज़ के उच्चतम प्रामाणिक पैमानों का सम्मान करते हुए ऐसी गज़लें कहना अपने आप में एक अप्रतिम वैशिष्ट्य है|
अदब को ले कर हिन्दी हल्के में सब से बढ़िया मेगज़ीन निकालते हैं ये, जिसका कि नाम है “लफ्ज”| ये मेगज़ीन अब तक अनेक सुख़नवरों को नुमाया कर चुकी है| ग़ज़ल के विद्यार्थी जिनको कहना चाहिए, ऐसे क़लमकार भी स्थान पाते हैं “लफ़्ज़” में|
मेरा सौभाग्य है कि मैंने कुछ घंटे बिताए आप के साथ में| पूरी सादगी और विनम्रता के साथ आप ने अपना अनुभव और ज्ञान जो मेरे साथ बाँटा, उस के लिए मैं सदैव आप का आभारी रहूँगा|
मुझे यह लिखना ज़रूरी लग रहा है कि हर ज्ञान पिपासु के लिए आप के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं|
तुफ़ैल जी का ई मेल पता:- tufailchaturvedi@yahoo.com
मोबाइल नंबर :- +91 9810387857
तुफैल जी द्वारा अनुदित उपन्यास ’खोया पानी’ भी अद्भुत है...शानदार परिचय कराया आपने.
ReplyDeleteजी समीर भाई आदरणीय तुफ़ैल जी ने - "मुश्ताक अहमद यूसुफी साहब" के 'खोया पानी' और 'तेरे मुँह में ख़ाक" इन दोनों उपन्यासों का अनुवाद किया है|
ReplyDeleteतुफैल जी का परिचय हम सबसे करवा कर आपने हम सभी पर उपकार किया है ! उनके एक से बढ़ कर एक लाजवाब अशआरों की बानगी देखते ही बनती है ! उनकी ग़ज़लों को पढना एक अद्भुत अनुभव होगा ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteतुफैल चतुर्वेदी से वाकिफ़ हूँ और उनके फ़न और रिसाले से भी.खूबसूरत अशआर कहने वालों में उनका नाम लिया जाता है.उनका आपके ब्लॉग पर ज़िक्र देखकर अच्छा लगा.
ReplyDeleteतुफैल चतुर्वेदी जी के नाम के साथ जी लगाना त्रुटिवश छूट गया है,क्षमा चाहता हूँ. कृपया उनके नाम के साथ जी लगाते हुए मेरा कमेन्ट पढ़ें.
ReplyDeleteआज का यह परिचय और एक बहुत सशक्त रचना पढवाने के लिए आपकी आभारी हूँ |इतनी गंभीर गहन विचारों से ओतप्रोत रचनाएँ कम ही पढ़ने को मिलती हैं |
ReplyDeleteआशा
अच्छे आदमियों के अच्छे विचार ख़ुशी देते हैं। श्री तुफ़ैल चतुर्वेदी जी के बारे में जानकर भी खु़शी हुई और इस ब्लॉग पर आकर भी।
ReplyDeleteधन्यवाद ।
ख़ुशी के अहसास के लिए आपको जानना होगा कि ‘ख़ुशी का डिज़ायन और आनंद का मॉडल‘ क्या है ? - Dr. Anwer Jamal
वाह! भाई साब !! आपने अच्छा ही किया जो तुफैल जी से परिचय करवा दिया | यहाँ प्रस्तुत उनका एक एक शेर लाजवाब है | गज़लें पढ़के मज़ा आएगा | धन्यवाद !!!
ReplyDeleteतिलक राज़ कपूर जी की टिप्पणी, ई मेल द्वारा:-
ReplyDeleteतुफ़ैल चतुर्वेदी जी की गिनती नामी गिरामी शुअरा में होती है, कुछ इस तरह के शाइर हैं कि:
हर शेर कह रहा है कि पहचान लीजिये
मुझको 'तुफ़ैल' नाम के शाइर ने है कहा।
देवेन्द्र गोस्वामी जी की टिप्पणी, ई मेल द्वारा:-
ReplyDeleteतुफैल जी का परिचय और उन की ग़ज़लें पढ़वाने के लिए शुक्रिया
तुफैल जी से परिचय प्राप्त कर खुशी हुई। उनकी शायरी वाकई दमदार है।
ReplyDeleteआपका आभार, इस प्रस्तुति के लिए।
प्रिय भाई नवीन जी,
ReplyDeleteमुझे इस अनमोल लिंक को देने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ. साथ ही आपको यह बताना आवश्यक समझता हूँ की दुनिया के सारे नियम तोड़ सकता हूँ मैं क्यों की मैं विश्वास करता हूँ इस बात पर की नियम हमारे लिए हैं न की हम नियमों के लिए. इस पोस्ट को स्वरचित पर देने के लिए सारे नियम मूक कर दिए जायेंगे. साथ ही यह पोस्ट और कहाँ कहाँ आपको दिखेगी यह आप देखते और गिनते रहिएगा.
आपको तो पता है कि मैं एक ऐसा एकलब्य हूँ जिसे उसके गुरु द्रोणाचार्य अभी जानते ही नहीं. आशा करता हूँ कि अब और अधिक कुछ लिखने की आवश्यकता नहीं रही.
thanks for making us meet such a great personality !!
ReplyDeleteतुम्हारी बात बिलकुल ठीक थी बस|
ReplyDeleteतुम्हें लहज़ा बदलना चाहिए था||
तौलते बातों को जो हैं ओहदों से
ऐसे लोगों से कुछ न कहना चाहिए था...
चुनिन्दा अशरार के साथ पंद्रह गजलें मुफ्त....मज़ा आ गया
तुफैल जी का परिचय जान कर बहुत अच्छा लगा...हरेक शेर लाज़वाब और ज़िंदगी की हकीकत बयां करते हुए..आभार
ReplyDeleteसुन्दर लगा यह परिचय ! समय मिला तो उनके लिंक पर जाउंगा !
ReplyDeleteतुफैल जी को पढने का सौभाग्य प्राप्त हो चूका है. मैंने उनकी किताब "सारे वर्क तुम्हारे" पर अपनी किताबों की दुनिया श्रृंखला में लिखा भी है. उनकी पत्रिका 'लफ्ज़' का लाइफ मेंबर भी हूँ. इसमें दो राय नहीं के वो बहुत ऊंचे पाए के शायर हैं और उन्हें पढना हमेशा दिल को सुकून देता है.
ReplyDeleteउनकी किताब पर मेरा लेख पढने के लिए क्लिक करें:
http://ngoswami.blogspot.com/2009/02/6.html
Lajawaab sher hain ... Tufail ji ka parichay jan kar achhaa laga ...
ReplyDeleteek se bad kar ek sher hai.
ReplyDeleteLajawab !
shukriya parichay karwane ke liye.
वातायन क्या खोला हमने एक के बाद एक गज़ल का झोंका आया ,मधु रस लाया ,दिल हर्षाया ,भावों ने कितना तरसाया .एक से बढ़ कर एक -
ReplyDeleteउठाए फिरतें हैं सर पर सियासी लोगों को ,
अगरचे काम किसी का नहीं निकलता ।
महब्बत में ये किसने ज़हर घोला ,
बहुत मीठा था पानी इस नदी का .शुक्रिया भाई साहब आपका इस दावत के लिए .बहुत बढिया सामान परोसा ।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका .
बहुत शानदार कलम से परिचय कारवाने के लिए धन्यवाद!
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