तेरे सपने, तेरे रँग
क्या-क्या मौसम मेरे सँग
आँखों से सब कुछ कह दे
ये तो है उसका ही ढँग
लमहे में सदियाँ जी लें
हम तो ठहरे यार मलँग
जीवन ऐसे है जैसे
बच्चे के हाथों में पतँग
गुल से ख़ुश्बू कहती है
जीना मरना है इक सँग
कैसे गुज़रे हवा भला
शहर की सब गलियाँ हैं तँग
:-देवमणि पांडेय
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छोटी बह्र पर ग़ज़ल कहने का टेढ़ा काम और ऐसे खूबसूरत शेर। बधाई।
ReplyDeleteछोटे बहर की शानदार ग़ज़ल के लिए देवमणि जी को हार्दिक बधाई।
ReplyDeletesankshipt sundar..
ReplyDeleteआँखों से सब कुछ कह दे
ReplyDeleteये तो है उसका ही ढँग
Wah wah !!!