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Saturday, February 26, 2011

ये रात कैसे अचानक निखर निखर सी गयी

धुआँ उठा है कहीं खत जला दिये गए क्या
किसी के नाम के आँसू बहा दिये गए क्या

तो क्या हमारा कोई मुंतज़िर नहीं है वहाँ
वो जो चराग थे सारे बुझा दिये गए क्या

उजाड़ सीने में ये साँय साँय आवाजें
जो दिल में रहते थे बिल्कुल भुला दिये गए क्या

हमारे बाद न आया कोई भी सहरा तक
तो नक्श-ए-पा भी हमारे मिटा दिये गए क्या

ये रात कैसे अचानक निखर निखर सी गयी
अब उस दरीचे से परदे हटा दिये गए क्या
:- मनोज अज़हर
  • azhar.manoj@gmail.com


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5 comments:

  1. शायद पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको, गज़ब शेर कहे हैं भाई। बधाई।

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  2. वाह भाई वाह, हर एक शे’र शानदार। मनोज जी को बहुत बहुत बधाई।

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  3. Bahut Achche sher padhvaye aapne , Badhai!!!!

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  4. TILAK RAAJ SAHIB...utsaahwardhan ke liye bahut dhanyabaad !

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